दरभंगा

दरभंगा एम्स पर क्या राजनीति हो रही, किसे-कैसे फायदा या नुकसान; समाधान भी जानें

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, यानी ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) अभी बिहार में अकेला पटना में है। दूसरे एम्स के लिए लंबे समय से खबरें ही चल रही हैं। कभी बयानों की तो कभी टेंडर की। मगर, जमीनी हकीकत यह है कि दरभंगा में प्रस्तावित दूसरा एम्स केंद्र और बिहार सरकार के बीच झंझट में फंस गया है। किस बात से केंद्र की भाजपा सरकार को फायदा या नुकसान होगा या क्या होने से राज्य की महागठबंधन सरकार को लाभ या हानि होगी; बताना मुश्किल है, लेकिन समझना आसान है। भाजपा से राज्यसभा सांसद और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने जो लेटर बम पटका है, उसके बाद तो तय ही दिख रहा है कि दरभंगा में एम्स बनना अभी तो मुश्किल है। क्यों, यह समझने के लिए शुरुआत से शुरू करते हैं।

2015-16 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने की थी घोषणा
पटना में बिहार का पहला एम्स ठीक से चालू भी नहीं हो सका था, तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-16 के बजट में बिहार को दूसरा एम्स देने की घोषणा की थी। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली दुनिया से विदा हो गए और पटना में 2019 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी प्रतिमा का भी अनावरण कर दिया, लेकिन बिहार में एम्स बनना शुरू नहीं हुआ। यहां तक कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसकी जगह पर भी मुहर नहीं लगाई।

साथ हुए तो बात बढ़ी, दूर गए तो तकरार
जब बिहार में एम्स की बात आगे बढ़ी तो एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वापस एनडीए में आ चुके थे। बिहार में डबल इंजन सरकार चल रही थी। मुख्यमंत्री ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (DMCH) को ही अपग्रेड करने की बात की तो भी बात आगे बढ़ी। फिर डीएमसीएच के पास ही एम्स बनाने पर सहमति बनी तो जमीन हस्तांतरण की बात भी बढ़ गई। देखने वाली बात है कि जब घोषणा हुई थी, तब नीतीश कुमार महागठबंधन के मुख्यमंत्री थे। जब एनडीए के मुख्यमंत्री बने तो बात आगे बढ़ी। इतनी आगे कि सितंबर 2020 में केंद्रीय कैबिनेट ने दरभंगा के नाम पर स्वीकृति दे दी। लेकिन, फिर नीतीश कुमार महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन गए तो विचारों में टकराव भी दिखने लगा। नतीजा यह रहा कि पहले डीएमसीएच के पास अपेक्षित जमीन उपलब्ध नहीं करा पाने के आधार पर बिहार की महागठबंधन सरकार ने जगह ही बदल दी। नई जगह चुनने में राष्ट्रीय जनता दल का प्रभाव था, हालांकि जदयू कोटे के मंत्री संजय झा इसके लिए लगातार सक्रिय दिखे। लेकिन, तकरार है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही।

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